मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
एक मुद्दत से वो मिला नहीं हमें भी अब गिला नहीं
न ख़त्म होती बातो का यु भी सिलसिला नहीं
जरुरत से ज्यादा धुप से फूल भी अब खिला नहीं
मंजिल, राह, गद्दार, तनहा हमसफ़र नहीं, काफिला नहीं
#gaddar
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