Sunday 30 August 2015

कुछ शेर गद्दार

इन पलकों कि निगेहबानी में
अश्क का बहना मुनासिब नहीं लगता

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लाख आजादी कि दलीलों पर
वो परिंदा रिहा होकर रिहा नहीं लगता

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अपनी शर्तों पर जीने कि ख्वाहिशें
   कर ही देती है अक्सर तन्हा मुझे

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वक़्त पर अपनी ही प्यास बुझाते
     कुछ घड़े खुद में रीते ही मिले

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#गद्दार

Friday 14 August 2015

इशारें गद्दार

शाम दुपहर का एक किनारा लिए
डूबी उल्फत तिनके का सहारा लिए

दर्द है तो दर्द की नुमाईशे न कर
कश्ती डूबी है समंदर का किनारा लिए

झुलसे "गद्दार" सहरा की तपिश में
लिखता है वो अक्सर एक इशारा लिए

#gaddar



Saturday 8 August 2015

इश्क हिज्र गद्दार

इश्क़ में दर्द की इंतेहा ना कर
जख्म भरते नहीं, उन्हें ताज़ा ना कर

सो ही जायगी फ़ुर्क़ते शब् में
फासलों में अब और परेशां ना कर @गद्दार

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हिज्र ए शब् गुजरना बाक़ी मुझ पर
में शाम से चराग़ जलाये बैठा हू...@गद्दार

Thursday 6 August 2015

राज प्यादे गद्दार

    राज दफ़्न हो सारे, एक कुआ गहरा नहीं हु मै
          ना उठा चीख मुझ पर के बहरा नहीं हु मै

बिजलियाँ कड़कती मुझ पे, अश्क़ की बारिशो में
               बेलाग सा जंगल हु के सहरा नहीं हु मै

                जीत की आरजू में, प्यादों की शह पर
               हालात का मारा हु पर मोहरा नहीं हु मैं

#gaddar

Monday 3 August 2015

सहरा

अश्क भी तपिश ले, निगाहें आतिशो पर

 सहरा की तिश्नगी भारी पड़ी बारिशों पर

#gaddar