Thursday 31 December 2015

मेरी शराफ़त

तीर नजरों से चले         तो शरारत है
बात दिल में चुभे        तो शिकायत है

   कहने पे जो बरपे      हंगामें अक्सर
  चुप रहता हूँ तो         मेरी आफत है

 इस ग़ज़ल में तुम्हे      कुछ न मिलेगा
राज राज रहे      इस बात से राहत है

 अगर जो कहता हूँ   "गद्दार" खुद को
इस दौर में सच कहना मेरी शराफत है #गद्दार

Wednesday 30 December 2015

सख्त दिल

चलता हूँ सख्त दिल ओ जान लेकर
आसां नहीं मुहब्बत को ठोकर में उड़ाना #गद्दार


Tuesday 29 December 2015

आवारगी

मुक़द्दरो पे आवारगी लिखवा लिया मैंने
रास्तो से पूछता हूँ तू कँहा तक जायेगा #गद्दार



Sunday 27 December 2015

ताज

चाँद पत्थर से तराशा ये नीलम का बदन
चांदनी ख्वाब में उतरी हो बन संगमरमर #गद्दार

Saturday 26 December 2015

वादे गद्दार

जब सामने से गुजरता देखना
शरम का पानी उतरता देखना

किये थे जितने     वादे तुम से
हर वादे से     मुकरता देखना

बह गये  आँख से  आँसू  सारे
हर वो ख्वाब बिखरता देखना

जख्म के फिकर में गमजदा होकर
दूर से ज़ख्म को भरता देखना

जिस को दिल में उतरता देखा
"गद्दार" दिल से उतरता देखना #गद्दार

Friday 25 December 2015

No comments Gaddar

आ तौहीन करो मेरी, मुझे हैरान कर दो
लौट कर जाओ और ये अहसान कर दो

इश्क़ दूर    ही रखो, बेवफाई इल्जाम दो
सब पर जता-2 कर मुझे परेशान कर दो

  हाथ पहुँचने लगे है आसमां तक जो मेरे
  तोड़ ख्वाबो के पर, मेरा नुकसान कर दो

    राज धँसे है "गद्दार" तेरे भीतर तक गहरे
     बेनकाब कर के मुझे फिर इन्सान कर दो #गद्दार


ज़ुल्फ़ झरोख़ा गद्दार

  सर्द झोंको से बनती ये जुल्फ़े झरोख़ा
    झिलमिल सा झांके वो चेहरा तुम्हारा #गद्दार

Tuesday 22 December 2015

तमाशा कहानियाँ गद्दार

          तमाशा   नजर आया अपनी कहानियों में
          हादसे हो ही जाते है अकसर जवानियों में

            खबर थी  की दौड़ कर   पहुँचो ऊँचाई पे
            घुटने छिल ही जाते है    इन नादानियों में

              सैलाब आये तो     बहा लाती है गर्द भी
              फ़िजा ही शोर करती है इन वीरानियों में

              आँखे खोल  न डर  के ख्वाब नाजुक है
              उठ भी जा क्या रखा इन मनमानियों में

                "गद्दार" निगाह में  मुहब्बत तलाश कर
                 दिल बहक    ही जाता है दीवानियों में   #गद्दार

तुम्हारा जवाब गद्दार

      मुझ को अपना कहने वाले
      मुझ को बात...गवारा नहीं

     नभ् के नीचे रात जगा   पर
     टुटा कोई.......सितारा नहीं

      खाकर कहता तेरी सौं    में
     बीती बात.......दुबारा नहीं

      खुद को मुझ में देखने वाले
    मेरा अक्स.......तुम्हारा नहीं   #गद्दार

इश्क़ ताले

यूँ इश्क़ में कई भरम पाले है
अधूरे लिखे ख़त भी संभाले है

नादानियों, बेचैनियों के बाबद
    तेरे दीदार को रस्ते निकाले है

   तेरे लिए खुदा का रुख करता हूँ
       इबादत के  हर्फ़ बदल डाले है

क्या बचपना है या फिर मुहब्बत में हूँ
     फिर तेरी हा,ना के सिक्के उछाले है

फिजायें इश्क़ की घुस आई है घर में क्यूँ
   "गद्दार" तेरे दिल पे तो बरसो से ताले है।

~गद्दा

Saturday 19 December 2015

मेहँदी पायल गद्दार

       मुहब्बत में तेरी गजब का दीवाना
        जो देखूँ हथेली पर मेहंदी लगाना

        हो ही गया जो मुहब्बत में घायल
        सीखा दो मुझे भी यूँ बातें बनाना

       नज़र का जो मेरी तुम पे असर हो
        नजाकत से तेरा वो नज़रे चुराना
      
       मिलने जो आओ तो रखना इशारें
       छम छम सा कर के पायल बजाना #गद्दार

शबनमी वादियां गद्दार

    शबनमी कतरों का दिलकश ठिकाना
     शीशे  पे  तेरा  वो    ऊँगली  चलाना

     बातों का मेरी जो तुम पर जिकर हो
       गुलाबी सी रंगत का गालों पे आना
     
       वादी   में   गूँजे    सदायें    तुम्हारी
     वो परबत पे चढ़कर आवाजें लगाना

        दरमियां हवा को गुज़रने न दो तुम
       आता बहुत है      उन्हें बातें बनाना #गद्दार

Friday 18 December 2015

हवाएँ नश्तर गद्दार

         हवाओं से सीखो परवाजें लगाना
          आग पानी से सीखो यादें मिटाना

        रिश्तों में ख़ामोशी रखकर के देखो
    सीख जाओगी तुम भी दीवारें उठाना

        सर्द हवा नश्तर सी छू कर के गुजरी
     ज्यों काँपता सा ख़ंजर चूका निशाना

    "गद्दार" जो है सब कुछ साफ़ सा कहो
       आसां नहीं है अब कुछ बाते छुपाना  #गद्दार

Thursday 17 December 2015

धुप सर्द शाम गद्दार

किरनें छुपा रखी थी मुट्ठी में थाम कर
  लो धुप का नजारा इस सर्द शाम पर #गद्दार

Wednesday 16 December 2015

मेरी डायरी

बिखर बिखर के दर्ज़ हुई साँसे डायरी में
पन्ना पन्ना तेरी याद का महकता मुझमे  #गद्दार


सर्द अलाव गद्दार

अलाव जलने दो कुछ और देर............
ऱोज हम कँहा बैठने वाले यूँ करीब..........

वो सर्द कहानियों सी बहती हवाएँ..............
      सुनने रुको न तुम और एक पहर .........

   चटकती लकड़ियों ये ख़ामोश निग़ाहें
     कुरेदे से शोलों सी क्यूँ रखती हो मुझ पर

      ठिठुरती हुई सी वो नाजुक उंगलियां
                 झांकती है लिहाफ़ से तुम्हारे और...

थामे हुए इक काफ़ी का मग......
ख्वाहिशें उठती है महकती सी बन धुँआ ...

तो अलाव जलने दो....

और हाँ

होंठो की तपिश से सुलगाई थी लकड़ियां
    साँसों से फूंक फूंक कर जलायें रखना  .....#गद्दार

Tuesday 15 December 2015

लौटना मेरा गद्दार

     सुबह पर फ़ासले बढ़ाता हूँ
    शाम पर वंही लौट आता  हूँ

      जो पाता हूँ सब गंवाता  हूँ
        हाथ खाली लौट आता हूँ

    ख़ुद से लड़कर भीतर भीतर
      थक कर खुद को हराता हूँ

      सर्द रातों के काँपते अलाव
       इक इक ख़्वाब जलाता हूँ

     यादों की लोरियाँ गुनगुनाकर
     "गद्दार" मै ख़ुद को सुलाता हूँ    #गद्दार

 

Monday 14 December 2015

धुप खामोशियां गद्दार

धुप ने बख्शी है इज्जतें मुझे
इक साया दिया जो मेरे साथ घूमता है

शोर अंधेरों का सोने नहीं देता
    खामोशियां लिए दिन रात घूमता  है  #गद्दार

धानी चुनर गद्दार

  गजलों में फिर वो रवानी आएगी
  ओढ़कर चुनर  वो  धानी आएगी

    गालों की रंगत से तुम देख लेना
लगा  कर गुलाबो का पानी आएगी

मिलेंगी मुहब्बत में चुप सी निगाहें
  रुत भी ये अब के सुहानी आएगी

 जुल्फ़े गिराने की उनकी अदा पर
      पलकें हया से झुकानी आएगी

       जब भी बजेगी मुरली तुम्हारी
     राधा सी बन वो दीवानी आएगी #गद्दार

रवानी = flow
धानी = yellowish
गुलाबो का पानी = rose water

Sunday 13 December 2015

सर्द शाम गद्दार

         सर्द सी मखमली हवा में मीठा सा ये लम्स घुले
       गीली रेत के सहरा में जब सूरज भी है पिघले से

         जाने कब आँगन में तेरे  मिश्री से ये फूल खिले
   झुकी-2 सी नज़र के संग में चोरी चोरी  होंठ मिले

    

Saturday 12 December 2015

दूसरा इश्क गद्दार

       इक चेहरा वो अनजान हुआ
 मुझे इश्क़ में फिर नुकसान हुआ

          वो सर्द हवा बन गुज़र गया
              मै बस्ती सा वीरान हुआ

                सामने रख कर आईना
             ये चेहरा फिर हैरान हुआ

              रफ़्ता रफ़्ता दूसरा इश्क़
            जब पहले के दौरान हुआ   #गद्दार

Friday 11 December 2015

मुकद्दर गद्दार

हिज्र में अंधेरो का मुकद्दर जाना
    किसी और रंग की चाहत नहीं मुझे

    फिर इस भीड़ में धकेला गया हूँ
कि उन तन्हाइयों की आदत नहीं मुझे   #गद्दार

Thursday 10 December 2015

परिंदा गद्दार तिलमिलाहट

       ये जो तेरे पैरो की आहट है
       सूखे पत्तो की सरसराहट है

    गिरते झरने का शोर है तुझमे
      या  जंगल की मुस्कराहट है

अधूरे ख्वाब की ताबीर तो देखो
   कैद परिंदों सी फड़फड़ाहट है

दर्द "गद्दार" क्यूँ बेपनाह उठता है
तेरे चेहरे पे साफ तिलमिलाहट है  #गद्दार

Wednesday 9 December 2015

वक़्त ठोकरें गद्दार

टूटते शोले है फिर से जलने के लिए
मचलती बिजली जमीं से मिलने के लिए

सजा रखें है क्यूँ इन्हें बंद कमरो में
फूल तो था ही जंगल में खिलने के लिए

मुसाफिर रस्ते का क्यूँ ठहरा हुआ है
उठते है कदम कंही पे तो चलने के लिए

गैर पे तोहमत लगाना आसान है शायद
वो बदलेगा नहीं एक तेरे बदलने के लिए

वक़्त रहते तुम भी संभल जाओ "गद्दार"
मौका मिलता नहीं सब को संभलने के लिए   #गद्दार

अंदाज़ा जवाब गद्दार

     हवाएँ क्यूँ ख़ुश्क है अंदाज़ा  लगाना
   लौट कर जाओ और दरवाजा लगाना

मेरे होंठो के तबस्सुम से खाओ न धोख़े
   जख़्म भर चला है कुछ ताज़ा लगाना

    सुन लो ये ग़ज़ल सवाल के जवाब में
फिर मेरी उन बातों का अंदाज़ा लगाना

   भूल जाओ कुछ नहीं अब नाम में मेरे
"गद्दार" कहकर ही तुम आवाज लगाना  #गद्दार

Monday 7 December 2015

आईने

अपनी ही शक्शियत से फिर मुलाकात न हो
        आईने को भी मै ढक कर के देखता हूँ  #गद्दार

पहाड़

पहाड़ मेरे गम के कटते नहीं थे
नदी तुम्हारे भी बहुत अहसान है #गद्दार

Monday 30 November 2015

ख्वाहिशे हक़ गद्दार

माना मुहब्बत में उजाले बहुत है
     वफ़ा के पैरों में छाले बहुत है

ख्वाहिशें उल्फ़त में बड़ती जा रहीं
  इन आँखों ने ख्वाब पाले बहुत है

     तुम्हें मुहब्बत में खुदा बनाया है
   नादान से दिल में शिवाले बहुत है

        नशा इतना कि मय चढ़ती नहीं
निगाहों में शराब के पियाले बहुत है

  छोड़ क्या रखा गैरो की रोटियों में  
"गद्दार" तेरे हक़ के निवाले बहुत है  #गद्दार

Sunday 29 November 2015

ख्याल

हल्के हाथों से मिटा रहा है चादरों से ख्याल मेरा
           मिटा भी पायेगा ज़ेहन से वो  विसाल मेरा  #गद्दार

(विसाल -मिलन)

Saturday 28 November 2015

ये गुलाब

दिल में छुपा लो मगर खुशबुएँ ही दूँगा
मेरी फ़ितरत भी हुई कुछ गुलाब की तरह #gaddar

इक गुलाब

दिल में बसा कर गुलाब सा देखो
तमन्ना मेरी भी कुछ ख़ुश्बू सी अब #गद्दार

Friday 27 November 2015

भीगी ज़ुल्फ़

भीगी सी जुल्फों को झटक कर पलटती हो
इक ख्याल कसीदे सा ग़ज़ल पन्नों को उलटती हो #gaddar

Wednesday 25 November 2015

इक तुम और

तेरी इन आँखों से छलकता
हर अश्क का मोती गिरता है

इन पानियों पर और उछल कर

उलझ जाती है कुछ बुँदे
तुम्हारी इन जुल्फों में 

और  सुनहरी सी किरण गुजर कर
बनाती है इंद्र धनुषी छटाएं

तो चांदनी भी करती है  रस्क तुम्हारी किस्मत पर

आ जाती है नर्मियत  हवाओं में
और बन बदलियाँ बरस पड़ती है इक मुझ पर

भीग जाता हूँ मै अपनी ही रूह तक
जब तेरी आँखों से छलकता हर अश्क .......#gaddar

Tuesday 24 November 2015

टूटता सितारा

क्या करे कोई सितारा टूट कर ख्वाहिश न हो
अब मेरी चाहत को भी मुझसे कोई ख्वाहिश नहीं

#gaddar

Monday 23 November 2015

अंगड़ाई

शोखियां अर्श से फर्श पे उतर आई है
   फिर मासूम ख़्यालो की अंगड़ाई  है #gaddar

Tuesday 17 November 2015

किताब लिख रहा हूँ

        जानता हूँ तुम्हें  हैरान दिख रहा हूँ
मै आँखों में अपनी किताब लिख रहा हूँ

             पढ़ना चाहो तो नज़रे मिलाओ
                 बंद करना तो नज़रे हटाओ

इन आँखों से हर्फ़ की जुबां सीख रहा हूँ
मै आँखों में अपनी किताब लिख रहा हूँ

वो बातें, वो यादें और मुलाकातों के पल
        पन्नों पे किस्से तमाम लिख रहा हूँ   #गद्दार

Sunday 25 October 2015

माफ़ी सज़ा गद्दार

  जला ही देंगे ये सुलगते से ख़्वाब मुझे
  मिलते नहीं इन सवालो के जवाब मुझे

       हर शाम दरिया पे ये नज़ारे होते है
    डूबता मिले ख्वाहिशें आफ़ताब मुझे

   तेरी मुआफ़ी मेरे लिये मानिंद ए सज़ा
    क्यूँ दे दिये ये "गद्दार" से ख़िताब मुझे

    जब भी तेरी यादों के पन्नें उलटता हूँ
       क्यूँ मिलते नहीं सूखे हुए गुलाब मुझे

#गद्दार

Sunday 18 October 2015

खामोशियां जुर्म गद्दार

स्याही में अश्कों को घोलता रहा
मै खामोशियों कि जुबां में बोलता रहा

दरिया, मयख़ाने हर ठिकाने देखें
ज़ामें तिश्नगी में समंदर उड़ेलता रहा

चराग़ भी कंहा तक रौशनी बिखरें
     स्याह अंधेरो के मंज़र टटोलता रहा

मेरे हुनर को कहते है जुर्म "गद्दार"
में इक चाबी से हर ताले को खोलता रहा

#गद्दार

Friday 16 October 2015

एक सवाल गद्दार

मै लिखूँ या चुप रंहू    जवाब की तलाश में
जाने क्या बारे में मेरे अब से सोचा जायेगा

फैसला भी जानकर तुझको ही तकता रंहू
तू कहे कोई और है, मुझको  देखा जायेगा

उसका क्या जो लिख गया तहरीर इन पानियों पे
क्या उसे अब आग के हाथों मिटाया जायेगा।

फैसले मुझसे कहें सज़ाएं भी अब तुम को ही हो
मुंसिफ के बयानों में गुनहगार माना जायेगा

कह गये ये फ़ासले नजदीकियां आसां ना है
  हम भी देखेंगे अब कोई कँहा तक जायेगा

उसके आंसू दर्द ये घाव कुरेदे हुए
दिल की शह और मात में "गद्दार" मारा जायेगा

#गद्दार

Wednesday 14 October 2015

हल्के हल्के शरारे

इस कदर बात उठे दिल को दिवाना कर दे
     गर्म सी धूप औ रातों को सुहाना कर दें

हल्के हल्के से शरारो सी वफा भी हो अगर
   साथ में सर्द से झोंकों का ठिकाना कर दे

कुछ भी इजहार हो दिल से तो जुबां चुप सी हो
     सारे लफ्ज़ों को मुहब्बत से रवाना कर दे

  तुम चिरागों को हवाओं में इस कदर रखना
          शमां ए नूर से रौशन ये जमाना कर दे ।

Saturday 3 October 2015

जुल्फ़े तुम्हारी

सर्द रातों में जुल्फे तुमने जब सँवारी है
दिल के जज्बात में आतिशे ही उभारी है ।

सुर्ख गालों से मिली रंगत सारे फूलों को
पार दरिया के जैसे कश्ती सी उतारी है ।

रंग होठों का लगा शामिल मौसिमे गुल सा
शोख नजरो में लगी मैय की ही खुमारी है ।

Thursday 1 October 2015

पत्थर गद्दार 3

आइना था एक दिन बिखरना हि था
पत्थर के हश्र पर अब सोचता हूँ  में  #गद्दार

Saturday 19 September 2015

वक़्त आसमान गद्दार

वक़्त भी अब क्या मेरा इम्तिहां लेगा
फुट कर रो देगा अगर जो जान लेगा

     कल का आया हुआ वो अजनबी
        क्या जगह हमारे दरमियां लेगा

तेरे अलावा एक ख्याल भी हो जेहन
दिल को छु कर के मेरा पहचान लेगा

पतंग ही तो लूटी थी फिज़ाओ ने तेरी
क्या लड़ कर खुदा से आसमान लेगा

#गद्दार

Friday 11 September 2015

पत्थर गद्दार 2

दरिया कि ख़ामोशी को तोड़ने की जिद पर
           मेरे हाथ का हर  पत्थर गंवाया मैने

#गद्दार

पत्थर गद्दार 1

तेरा दर्द मेरे हाथों कि जद में ही है
खातिर उंगलियो को पत्थर से कुचल कर देखा

#गद्दार।

Thursday 10 September 2015

एक पत्थर गद्दार

दरिया की ख़ामोशियों को तोड़ने कि एवज़ में
मेरे हाथ का पत्थर गवांना पड़ा मुझे        #गद्दार

Sunday 30 August 2015

कुछ शेर गद्दार

इन पलकों कि निगेहबानी में
अश्क का बहना मुनासिब नहीं लगता

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लाख आजादी कि दलीलों पर
वो परिंदा रिहा होकर रिहा नहीं लगता

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अपनी शर्तों पर जीने कि ख्वाहिशें
   कर ही देती है अक्सर तन्हा मुझे

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वक़्त पर अपनी ही प्यास बुझाते
     कुछ घड़े खुद में रीते ही मिले

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#गद्दार

Friday 14 August 2015

इशारें गद्दार

शाम दुपहर का एक किनारा लिए
डूबी उल्फत तिनके का सहारा लिए

दर्द है तो दर्द की नुमाईशे न कर
कश्ती डूबी है समंदर का किनारा लिए

झुलसे "गद्दार" सहरा की तपिश में
लिखता है वो अक्सर एक इशारा लिए

#gaddar



Saturday 8 August 2015

इश्क हिज्र गद्दार

इश्क़ में दर्द की इंतेहा ना कर
जख्म भरते नहीं, उन्हें ताज़ा ना कर

सो ही जायगी फ़ुर्क़ते शब् में
फासलों में अब और परेशां ना कर @गद्दार

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हिज्र ए शब् गुजरना बाक़ी मुझ पर
में शाम से चराग़ जलाये बैठा हू...@गद्दार