Saturday 25 June 2016

बारिशें भीगना गद्दार

इशारों में कहने लगा हूँ, कुछ बताने की जगह
पास   तेरे आने लगा हूँ, दूर    जाने की जगह

चेहरे तेरे जबसे मुझे इन बादलों में  दिखने लगे
भीगता  ही मै रहा  फिर सर छुपाने की जगह

नींदों में बिखेरेे गेसुओं से रुख़ पर वो मासूमियत
देखता  ही मै रहा   तुझको  जगाने की जगह

मेरी  इन  नादानियों  पर  जब   मुझे हो डाँटती
झूठमुठ  का रो  देता मै  मुस्कुराने  की  जगह

नज़्म सी लिक्खी थी मैने हो गई तुम इक ग़ज़ल
फिर जोर जोर गाने लगा मै  गुनगुनाने  की जगह #गद्दार
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Tuesday 21 June 2016

हवस कीमत गद्दार

जवां कश्ती सफ़र करने सभी तैयार बैठे है
जो बैठे  है किनारे पर समझते पार   बैठे है

फूल से चेहरों पर लिखकर नाखुनो से कुछ निशां
हवस की आग में जलकर मुक़दमे हार बैठे है

उजड़ी  हुई  दुनिया में, मेरे दिल का ये आलम
खुदा भी ये जानता है के दिल में, दो चार बैठे है

कीमत लगा कर रखते है अपने जमीर  की
जिधर देखो उधर, हर शक्ल में "गद्दार" बैठे है #गद्दार

Monday 20 June 2016

टूटी कश्ती गद्दार

दिल ऐसे जीते सब कुछ  हार  आए
टूटी कश्तीयाँ साहिल पे उतार आए

खामोशीयों को हमने ओढ़ लिया है
क्यूँ दरमियां शीशो  की दीवार आए

याद तुम्हारी  वादियो में गूंजती सदा
जो पुकारूँ एक बार तो बार बार आए

कमाल किया तेरी चाहतों के बिना
कुछ ऐसे जिए के जिंदगी गुजार आए #गद्दार

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Saturday 18 June 2016

गुनाह राब्ता गद्दार

भुख लेकर आई जो हवस  निग़ाह में
इक गुनाह फिर लिक्खो मेरे गुनाह में

इंसाफ क्या मिलेगा तराजू में तौलकर
आ  गए जो  मुज़रिम   तेरे  गवाह में

सफ़र की थकन में हारा हुआ ये जिस्म
लौटकर ले    आयेगा  तेरी  पनाह  में

कितना हसीं राब्ता अश्क और आह का
मै उसके इम्तिहां में हूँ वो मेरे इम्तिहा में #गद्दार


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Sunday 12 June 2016

ख़ामोशी जुर्म गद्दार

स्याही में अश्कों को घोलता रहा
मै खामोश   जुबां में बोलता रहा

दरिया, मयख़ाने हर ठिकाने देखें
तिश्नगी में   समंदर टटोलता  रहा

क़ातिल के   हक़ बयां पर चुप मै
मुंसिफ के लफ़्ज़ों को तौलता रहा

मेरे हुनर को वो कहते है जुर्म "गद्दार"
मै बिन चाबी से सब ताले खोलता रहा
#गद्दार

Saturday 11 June 2016

चाँद घुँघरू गद्दार

चाँद के पर कतरता हूँ उन्हें  जुगनूं  बनाता हूँ
फुल के जिस्म में रहकर उन्हें खुश्बू बनाता हूँ

ख़्वाब पहलू में आकर मेरे, घर लौट जाते है 
मै  नींदों में गर रहता हूँ  उन्हें हर सू  बनाता हूँ

दर्द  भीगी रात के तकियों पर कटती है 
मै अगर दिल में रोता हूँ तो आंसू बनाता  हूँ 

आती है दबे पाँव से वो गाती हुई   ग़ज़ल 
झंकार के ख़ातिर   उन्हें घुँघरू बनाता हूँ 
#गद्दार



Friday 10 June 2016

चिट्ठियाँ यार गद्दार

तमन्ना ए दीदार ने आँखों में    पनाह ली
अजब सी खुमारी थी पलकों ने छुपा ली

लफ्ज़  होंठो पर लरजते  थम गए मेरे
निग़ाह यार ने  मेरी निग़ाहों  से मिला ली

हर किसी आहट पर  दिल जोर से धड़के
चिठ्ठीयाँ यार की आई थी मुट्ठी में दबा ली

रातों में लिक्खी तहरीरें मै पढ़ न सकूँ
खामखाँ इश्क़ की आफत में नींदे उड़ा ली
#गद्दार

Monday 6 June 2016

गुलाब जलपरी गद्दार

    होंठो की रंगत देखता हूँ खुद को भुला कर
ज्यों गुलाब की दो पँखुड़ी रक्खी हो सजा कर

फूल  झरते  है   झिलमिल, झिलमिल  से  तेरे
हँसती हो जब  तुम मुझपे यूँ  खिल खिला कर

जलपरी तक भी पहुचेंगे  लिक्खे सब ख़त मेरे
दिये  थे  जो लहरों  को   साहिल  ने  बुला कर

इजहार ए मुहब्बत   पर  खामोशियों   से  वो
अब  भी   टाल  देगी  हर  सवाल मुस्कुरा  कर
#गद्दार

Sunday 5 June 2016

जवानी शराब गद्दार

रक्खी थी यादों कि निशानी संभाल कर
फ़ेक दी वो   चिट्ठियां  सारी  उछाल कर 

रिश्ते  वो  इक सिरे से उलझा गये   सारे 
किरदार  इक नया  कहानी में डाल कर 

बहकने लगती सोलह सत्रह की उमर में 
रखती नही कदम   जवानी  संभाल  कर 

शराब जो  लिखते  हो  इस मर्ज की दवा 
पी  गया  घूंट  घूंट     पानी  में  डाल  कर #गद्दार