मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
शाम दुपहर का एक किनारा लिए डूबी उल्फत तिनके का सहारा लिए
दर्द है तो दर्द की नुमाईशे न कर कश्ती डूबी है समंदर का किनारा लिए
झुलसे "गद्दार" सहरा की तपिश में लिखता है वो अक्सर एक इशारा लिए
#gaddar
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