मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
इश्क़ में दर्द की इंतेहा ना कर जख्म भरते नहीं, उन्हें ताज़ा ना कर
सो ही जायगी फ़ुर्क़ते शब् में फासलों में अब और परेशां ना कर @गद्दार
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हिज्र ए शब् गुजरना बाक़ी मुझ पर में शाम से चराग़ जलाये बैठा हू...@गद्दार
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