हिज्र कि शाम पे ढलना मेरा
बाकी है अभी आग में जलना मेरा
जिस्म तो कई रंग से रंगा मैने
फ़क़त चेहरा कालिख से मलना मेरा
ख़्वाब छुने की जिद जो करे वो
हाथ पत्थर से कुचलना मेरा
"गद्दार" फ़ितरत से बाज आओ वर्ना
मुमकिन नहीं दिल का बदलना मेरा #गद्दार