Friday, 26 February 2016

फिर पत्थर

हिज्र  कि  शाम   पे   ढलना   मेरा
बाकी है अभी आग में जलना मेरा

जिस्म  तो कई रंग   से   रंगा   मैने
फ़क़त चेहरा कालिख से मलना मेरा

ख़्वाब  छुने  की जिद जो करे    वो
हाथ   पत्थर  से      कुचलना   मेरा

"गद्दार" फ़ितरत से बाज आओ वर्ना
मुमकिन नहीं दिल का बदलना मेरा  #गद्दार

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