झूठ कुछ मेरे थे कुछ सच तुम्हारे
कुछ सच मेरे हो गये कुछ झूठ तुम्हारे
तुम आगाज़ पे चुप थी, मै अंजाम में चुप था
फिर ख़ामोश पत्थर के अंदाज में चुप था
थोड़े दूर तक ही हम हमसफ़र बन चले थे
और तेज़ क़दमो से चलने के मेरे फैसले थे
तुम पीछे रह कर अब मुझे आवाज़े मत दो
तुम जानती हो ना...................................
.....मुझे लौट कर आना नहीं आता ........ गद्दार
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