Sunday 28 June 2015

तिश्नगी अहमकी

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आ कुछ बरस जाऊ तुम पर
      तिश्नगी तेरी मुझ से देखी नहीं जाती

फसले गिरिया पक रही सीने में
 जख्मी  हाथो से मुझ से काटी नहीं जाती

मेरे होते चेहरे पे लाली छाई रहती है
  वो क्या है जिससे तेरी शोखी नहीं  जाती

उलटी कमीज़ पहने तुमसे मिलने आ गया
"गद्दार" अहमकी तुमसे कभी छोड़ी नहीं जाती

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