Tuesday 9 June 2015

मेरी पहचान



अनमने से ख्वाब है, क्या यंही परवाज़ है


में कंहू “गद्दार” खुद को क्या मेरी पहचान है


शख्शियत पे शख्शियत कब तलक ठहरेगी भला


कौन शख्श में हु, सवालिया निशान है। @ gaddar

No comments: