देख कर इन हाथों में लकीर मेरी
फाड़ दो वो पास की तस्वीरें मेरी
शोर सी करती है यूँ खींच तान में
छटपटाने से दर्द की जंजीरें मेरी
होती नहीं है शक्लें हकीकत बारहा
ख़्वाब से जुदा होती है ताबीरें मेरी
आंधियां आह सी उठे या अश्क ए सुनामी
समन्दर तक शामिल है जागीरें मेरी
#गद्दार
No comments:
Post a Comment