मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर,
उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का
वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
Sunday, 5 June 2016
जवानी शराब गद्दार
रक्खी थी यादों कि निशानी संभाल कर फ़ेक दी वो चिट्ठियां सारी उछाल कर रिश्ते वो इक सिरे से उलझा गये सारे किरदार इक नया कहानी में डाल कर बहकने लगती सोलह सत्रह की उमर में रखती नही कदम जवानी संभाल कर शराब जो लिखते हो इस मर्ज की दवा पी गया घूंट घूंट पानी में डाल कर #गद्दार
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