Monday, 6 June 2016

गुलाब जलपरी गद्दार

    होंठो की रंगत देखता हूँ खुद को भुला कर
ज्यों गुलाब की दो पँखुड़ी रक्खी हो सजा कर

फूल  झरते  है   झिलमिल, झिलमिल  से  तेरे
हँसती हो जब  तुम मुझपे यूँ  खिल खिला कर

जलपरी तक भी पहुचेंगे  लिक्खे सब ख़त मेरे
दिये  थे  जो लहरों  को   साहिल  ने  बुला कर

इजहार ए मुहब्बत   पर  खामोशियों   से  वो
अब  भी   टाल  देगी  हर  सवाल मुस्कुरा  कर
#गद्दार

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