होंठो की रंगत देखता हूँ खुद को भुला कर
ज्यों गुलाब की दो पँखुड़ी रक्खी हो सजा कर
फूल झरते है झिलमिल, झिलमिल से तेरे
हँसती हो जब तुम मुझपे यूँ खिल खिला कर
जलपरी तक भी पहुचेंगे लिक्खे सब ख़त मेरे
दिये थे जो लहरों को साहिल ने बुला कर
इजहार ए मुहब्बत पर खामोशियों से वो
अब भी टाल देगी हर सवाल मुस्कुरा कर
#गद्दार
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