Saturday, 18 June 2016

गुनाह राब्ता गद्दार

भुख लेकर आई जो हवस  निग़ाह में
इक गुनाह फिर लिक्खो मेरे गुनाह में

इंसाफ क्या मिलेगा तराजू में तौलकर
आ  गए जो  मुज़रिम   तेरे  गवाह में

सफ़र की थकन में हारा हुआ ये जिस्म
लौटकर ले    आयेगा  तेरी  पनाह  में

कितना हसीं राब्ता अश्क और आह का
मै उसके इम्तिहां में हूँ वो मेरे इम्तिहा में #गद्दार


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