Sunday, 25 October 2015

माफ़ी सज़ा गद्दार

  जला ही देंगे ये सुलगते से ख़्वाब मुझे
  मिलते नहीं इन सवालो के जवाब मुझे

       हर शाम दरिया पे ये नज़ारे होते है
    डूबता मिले ख्वाहिशें आफ़ताब मुझे

   तेरी मुआफ़ी मेरे लिये मानिंद ए सज़ा
    क्यूँ दे दिये ये "गद्दार" से ख़िताब मुझे

    जब भी तेरी यादों के पन्नें उलटता हूँ
       क्यूँ मिलते नहीं सूखे हुए गुलाब मुझे

#गद्दार

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