मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
सर्द रातों में जुल्फे तुमने जब सँवारी है दिल के जज्बात में आतिशे ही उभारी है ।
सुर्ख गालों से मिली रंगत सारे फूलों को पार दरिया के जैसे कश्ती सी उतारी है ।
रंग होठों का लगा शामिल मौसिमे गुल सा शोख नजरो में लगी मैय की ही खुमारी है ।
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