इस कदर बात उठे दिल को दिवाना कर दे
गर्म सी धूप औ रातों को सुहाना कर दें
हल्के हल्के से शरारो सी वफा भी हो अगर
साथ में सर्द से झोंकों का ठिकाना कर दे
कुछ भी इजहार हो दिल से तो जुबां चुप सी हो
सारे लफ्ज़ों को मुहब्बत से रवाना कर दे
तुम चिरागों को हवाओं में इस कदर रखना
शमां ए नूर से रौशन ये जमाना कर दे ।
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