स्याही में अश्कों को घोलता रहा
मै खामोशियों कि जुबां में बोलता रहा
दरिया, मयख़ाने हर ठिकाने देखें
ज़ामें तिश्नगी में समंदर उड़ेलता रहा
चराग़ भी कंहा तक रौशनी बिखरें
स्याह अंधेरो के मंज़र टटोलता रहा
मेरे हुनर को कहते है जुर्म "गद्दार"
में इक चाबी से हर ताले को खोलता रहा
#गद्दार
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