मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
खुदा के पाक रिश्तों में मजहब ही डर लिये रहता जलाके बस्तियाँ सारी हैवां ही घर लिये रहता मुताबिक आईनों के हमशक्ल होते है सारे ही जुनूँ इंसां का लेकिन फिर यहां पत्थर लिये रहता
#gaddar
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