Tuesday, 30 June 2015

आफ़ताब तन्हाइयां

आफ़ताब थमा आसमां में या नजर पथरा गई
क्या हो रहा जानिब कुछ सच्चाईया रख दो

पत्तो की ओट में से, अब खिल रहे गुलाब
काँटों से अब के उन पे निगेहबानिया रख  दो

आशिक उलझ रह माशूक की जुल्फ में
उनसे कंहो के  कही दिल में  बिनाईया रख दो

गंभीर से मसले कई, जरा नाजुक से  ये रिश्ते
लो उनके दरमिया अब कुछ सौदाईया रख दो

वफ़ा के बंद दायरों से, बाहर हुआ "गद्दार"
उसके वास्ते अब  कुछ,  तन्हाइयां रख दो

~गद्दार

Monday, 29 June 2015

ग़लतफ़हमी

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जरुरी नहीं की सुइयों ने जख्म कुरेदे थे
 मुमकिन हो उनसे तुम्हे टांके लगाये  थे

माचिस जलाई हो तो क्या आग ही जले
    मुमकिन हो उनसे कई दिए जलाये थे

  खंजरों पे लिखी हुई कतल की इबारते
   मुमकिन हो वो भी कई जाने बचाये थे

हंस हंस के मिलते तुने "गद्दार" देखा था
   मुमकिन हो वो  बेनाम रिश्ते बनाये थे

बारिश में लौट आया वो भीगे लिबास में
 मुमकिन हो उसने बहुत आँसु  बहाये थे

~गद्दार

Sunday, 28 June 2015

तिश्नगी अहमकी

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आ कुछ बरस जाऊ तुम पर
      तिश्नगी तेरी मुझ से देखी नहीं जाती

फसले गिरिया पक रही सीने में
 जख्मी  हाथो से मुझ से काटी नहीं जाती

मेरे होते चेहरे पे लाली छाई रहती है
  वो क्या है जिससे तेरी शोखी नहीं  जाती

उलटी कमीज़ पहने तुमसे मिलने आ गया
"गद्दार" अहमकी तुमसे कभी छोड़ी नहीं जाती

Friday, 26 June 2015

ताजिर फ़िजा मशक्कते

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वफ़ा बेचने ताजिर भी सरे आम निकले
इमां खरीदने फटी जेबो से दाम निकले

जिस कदर बदली हुई है मौज-ए-फ़िज़ा
मुमकिन है पैकर भी इक सामान निकले

हर शख्श मशक्कत से जुगाड़ में लगा
बेचैन जिंदगी में कब ऐशो आराम निकले

हवस परस्त निगांहे कुछ तलाशती मिले
"गद्दार" सोचते है कब माहे रमजान निकले

~गद्दार

Wednesday, 24 June 2015

फ़िराक में


क्या खूब कंहा कातिल ने में उस की मज़ार पे हू
क़त्ल हो कर भी नहीं मरता में फिर  फिराक में  हू

दौड़ ये मंजिलो की है और किस अजब मुकाम पे हु
खो के बस्ती में,जज्ब हो दुपहर भी सुबहो-शाम में हू

~gaddar




Tuesday, 23 June 2015

इश्क़ ताले

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यु इश्क़ में कई भरम पाले है
अधूरे लिखे ख़त भी संभाले है।

नादानियों, बेचैनियों के बाबद
तेरे दीदार को कई रस्ते निकाले है।

तेरे लिए खुदा का रुख करता हूं
इबादत के भी कुछ हर्फ़ बदल डाले है।

क्या बचपना है या फिर मुहब्बत में हूं
फिर तेरी हा,ना के सिक्के उछाले है।

फिजायें इश्क़ की घुस आई है घर में क्यूं
"गद्दार" तेरे दिल पे तो बरसो से ताले है।
~गद्दार

Monday, 22 June 2015

इश्क़ कातिल


रूह कत्ल हो गई थी मेरी कल रात में
इश्क़ कातिल भी शामिल था वारदात में

छींटे भी खंजर पे, दामन भी दागदार
खूं-ए-जां का सर्द रंग बहा जज्बात में

मुंसिफ के बयानों में जारी है  फेरबदल
जिरह भी हो चुकी है अब हवालात में

आरोप भी है लगे, दफाए भी अब लगेगी
शक ए वफ़ा वजह मालूम हुई तहकीकात में

इंसाफ क्या मिलेगा तराजू में तौल कर
फैसले होते नहीं इनके अदालात में

दिल भी ये शरीक था इश्क़ के साथ
"गद्दार" अब क्या करे इस हालात में

@गद्दार

Friday, 19 June 2015

ठुकरा दो मुझे

आ तौहीन करो मेरी, अब ठुकरा दो मुझे
लौटने को है तिश्नगी तेरी, तेजाब सा पिला दो मुझे

इश्क़ को मसले से बाहर ही रखो, बेवफाई की नोलिश कर दो
तेरे लौट कर आने की वजह अस्ल मालूम है मुझे

हाथ मेरे कुछ कुछ पहुँचने लगे है आसमां तक
तोड़ ख्वाबो के पर, जगह मेरी दिखला दो मुझे

राज गहरे है कई "गद्दार" तेरे भीतर तक धँसे
बेनकाबी की हो अगर तो इत्तिला कर दो मुझे..

@gaddar

Wednesday, 17 June 2015

लिबास


वो कहते है मेने उन्हें भुला रखा है
अश्क बहते ही नहीं पलको को सिला रखा है।

वो कहते है खामोश से है अब शेर मेरे
लफ्ज़ हिलते नहीं होंठो को भी सिला रखा है।

वो कहते है अजनबी सा नजर आने लगा हु मैं
लिबास-ए-वफ़ा में "गद्दार" का कमीज सिला रखा है

@gaddar

Saturday, 13 June 2015

पलाश के रंग


नींदो मे तेरी अपने ख्वाब तलाश लेता हू

फूल चुनने हो तो गुलाब रख पलाश लेता हू

         ऐसा तो नही की वो भी कुछ कम सुर्ख है

"गद्दार" निगाहो मे तेरी अपनी वजह तलाश लेता हू

Friday, 12 June 2015

दुआ




जिन्दगी से अजनबी और अजनबी सी जिन्दगी,
       मर रहे है रोज़ कुछ,जी रहे है कुछ अभी,
         है खुदा का कायदा, जितनी सज़ा है वो तो जी,
          अब दुआ के कायदो से भी दुआ मिलती नही 

Thursday, 11 June 2015

इश्क का फतवा

इश्क का फतवा है जरा गौर से पढना
मुमकिन हो अगर तो खुले तौर पे पढना

खुदाई को ले छिपा, नेकी हलाल कर
आशिक है दिल से दूर जरा जोर से पढना..

@Gaddar

प्यास इतनी है मेरी


खुदगर्ज इतने तो न थे की शोलो को हवा कर दो
प्यास इतनी है मेरी समंदर में दरिया मिला कर दो।

जिस्म और रूह की बंदिशों में दिल की गफलते
मुमकिन हो अगर तो मेरे जिस्म को रूहानी कर दो।

अश्क रख  आँखों में तुझसे मिलाऊँ किस तरह
ये लो मेरे रिश्ते को खुले तौर पे बेमानी कर दो।

कंहा रहती हो खोयी खोयी सी आजकल तुम
सलीका इतना ना रहा चाय में चीनी मिला कर दो।

@gaddar


Wednesday, 10 June 2015

नियत के इश्तेहार

   
हाथ लिए किरदार घूमता था
   
     वो हर मौको पे तैयार घूमता था

      चेहरे पे बदल बदल कर रंग  नए

         नियत के लिए इश्तेहार घूमता था..

@गद्दार


Tuesday, 9 June 2015

आइना

हर किसी के लिए कोई एक सा कब हुआ है
जितना देखो आइने हर शख्श बदला हुआ है।
मत सुन किस्सा मेरा अपना समझ् कर
जो गुजरी है मुझ पर उसका तू रहगुजर भी नहीं।

मेरी पहचान



अनमने से ख्वाब है, क्या यंही परवाज़ है


में कंहू “गद्दार” खुद को क्या मेरी पहचान है


शख्शियत पे शख्शियत कब तलक ठहरेगी भला


कौन शख्श में हु, सवालिया निशान है। @ gaddar

हर्फ़

मेरी लिखी ग़ज़ल को अंजाम न मिला
मुझ में बिखर के रह गए सारे हर्फ़ भी।

अधूरी नज्म

अधूरी सी इस नज्म को पूरा कर दो
पहले दिल में रहो फिर उसे तनहा कर दो।

सवालिया निशान


वो मुझ से दूर है, उनके लिए कहना आसान है
मेरी मौजूदगी कैसे भुलायेंगे सवालिया निशान है।

रात ग़ज़ल


रात बगल में लेटे लेटे जाने क्या वो सोच रही
उसकी नज़रे कह गयी जाने क्या एक शोख ग़ज़ल
मेरे जेहन से उतर कर सिरहाने वो आयी थी
रातो रातो जाने क्या क्या लिखती रहती शोख ग़ज़ल
अपनी चाहत के परो को खोकर मेने ये जाना
मुझ में, मुझसे लिखवाती थी वो ही सारे गीत ग़ज़ल

@गद्दार

बूंदों का असर

एक ग़ज़ल के साथ दिल अपना नज़र कर रहा होता
उनके जाने के मौसम पे दिल काबू न कर रहा होता
खुद को छोड़ पाता खुला एक पल के लिए भी तो
चेहरे पे गिरती बूँद कुछ और असर कर रहा होता
अगर मुहब्ब्बत इतनी आसां होती तो
इस समय उसकी कहानी का हिस्सा बन रहा होता
उसको पाने की मंज़िल अगर मुमकिन न हो
पर मेरी चाहत पहुचने का रास्ता होता

बारिश

क्यूँ आजकल बरसता नहीं पानी, मुझे इस हाल में तरसता हुआ देखो
बारिश देखना हो तो बारिश न देख मेरी आँखों को अब बरसता हुआ देखो

सवालात



ना करो इकरार न इनकार हो,ना कोई जवाब दो
दिल के कुछ ख्यालात को सवालात ही रहने दो..

जख्म गहरे




जख्म गहरे देख लु, तो मरहम पर यकीं ना हो
न कहो हकीम-ए-लुकमान हर मर्ज़ का इलाज़ है।

@ गद्दार

दरख़्त

कटते दरख़्त पर क्या फैसला भी हो
जिधर भी गिरेगा मुकर्रर मौत है।

@गद्दार

तेरा लौटना



लौट कर आया वो आज मेरी तरफ कुछ इस तरह


देखते ही देखते में देखता ही रह गया.....

कातिल

माहौल-ए-महफ़िल  थी “गद्दार” एक बोझिल की तरह
सुर्ख रंग में नज़र आया मुझे वो कातिल की तरह...

बर्बादी



कब तक कुसूरवार हो वो बर्बादियों का मेरी
में भी खुद को गिराने में शरीक रहा हु ।

वसीयत


कर दिल एतबार हकीकत थी मेरी वो
आखरी जो शेर था वसीयत थी मेरी वो।...

अल्फ़ाज़


में चुप रहा अल्फ़ाज़ ही बहे पन्नो पर मेरे
मेरे लहजे से कंही बेहतर है हाथ मेरे.....

याद


खो दू  हर वो याद मुझे रुलाने वाले
छोड़ गयी वो सब कुछ छोड़ के आने वाली..

एक रात ग़ज़ल


दर्द में खुद को डुबाना है मुश्किल
जैसा दर्द हो मुताबिक असर होता है

क्यों झांकते फिरे गुलशन के चारो और
मौसम-ए-गुल तो भीतर की तरफ होता है
रो लो तुम तो बारिश की झलक हो
हंस दो तो बहारो सा नजारा होता है
किसी की परवाह ना करु,तेरी बातें खामोश सुनु,
ऐसी हालत हे मेरी , शराब का हल्का सा असर होता है
रातो रातो जागते कटती है राते मेरी
आँखों-आँखों में नया पहर होता है

तूने कुछ राय बना ली हो बारे में मेरे
उससे साबित ही हर बार कुछ गलत होता है।

Monday, 8 June 2015

आग में जलाना चाहता हूँ।


ये उलझते हुए बादल, मन की उलझन की तरह,
उदासी भरी बारिश से खुद को बचाना चाहता हूँ।

घर को लौटू तो घर भी न मिले,
मुमकिन है रास्ता भुलाना चाहता हु।

मौजूद हु यंहा भी,मौजूद हु वंहा भी,
हाथ खुद के अब आग में जलाना चाहता हूँ।

रुक गया था मुहब्बत में मंजिल से पहले तक खुद को आकर साहिल पे अब डुबाना चाहता हूं...
@गद्दार

Sunday, 7 June 2015

तज़ुर्बा


देखा था प्यार हमने एक मर्तबा कर के,


टुटा है मेरा सब कुछ ये तजुर्बा कर के,

बांध कर रिश्ते में मुझे वक़्त यु गया था,

भागा था तोड बेड़िया जमानत से पहले..

एक चेहरा वो तेरा

एक चेहरे पे लगा के चेहरा देखु मगर
एक चेहरा वो तेरा ना भुला ना भुलायेगा
लौटना अब मुनासिब हो अगर या ना भी हो
तेरी राहे देखना भी नमाजो सा हो जायेगा
राख देखी रंज देखा,देखे कुऐ गहरे मगर
अब मेरा दिल डूबता सा,डूबता ही जायेगा
घर की राह लोटा हु, एक चुभन ठंडी सी है
नश्तरे दिल में चुभी या चुभ रही बाहर कंही
अब सितारे देख मुझको टिमटिमाना बंद करे
क्या गुनाह मुझ से हुआ अब छुप रहा है चांद भी
जग भरोसा ना करे तो ना करे ये भी सही
वो भरोसा ना करे, “गद्दार” अब किसको कंहू
क्या करे कोई सितारा टूट कर ख्वाइश ना हो
मेरी चाहत को भी अब मुझ से कोई ख्वाइश नहीं
@गद्दार

जाहिल नजर

वक़्त जो गुजरे तुम्हारे साथ जी लु उम्र भर,
बाकी दिनों का क्या करू रख दू उन्हें अब ताक पर
मेरी नज़रो में हमेशा खुद को ही तुम पाओगे
जो हुई ओझल अगर तो खो दू ये जाहिल नजर
@गद्दार

सर्द मौसम

किसी बहाने से भी दिल मेरा अब बहलता नहीं,
कागज़ पर भी कई दिन से जोर अब चलता नहीं,
वक़्त की शै है, या मौसम सर्द सा,
मिलाने को भी हाथ जेब से निकलता नहीं....

@gaddar

तेरे बारे में

तेरे बारे में कुछ यूं कहता हु

आज भी देखता हु होश खोता हु....

@गद्दार

समंदर

तुम्हारी चाहत के समंदर में भूल आया हु पतवारें
मुझे साहिल पे ला के छोड़ दे ऐसी मौज कंहा।..

@गद्दार

हासिल

ना गम रहा ख़ुशी रही, 
ना आसमां जमी रही,
मुहब्बत तो “गद्दार” नादानियों में की,
ना कभी हासिल हुई
न कभी कमी रही......


एक और
यु वक़्त को रोककर हासिल हुआ अब क्या मुझे
जो बीत गया वो बीत गया जो ना मिला वो ना सही..
@गद्दार

वजह

में इंतजार में हु, वो हालात बदल नहीं देता
अगर चाहू बदलना तो वो कोई वजह नहीं देता..

@gaddar

अवशेष

दिल में टूटे प्यार का 
रात का इकरार का
रास्ते इंतज़ार का
 बेबाक इजहार का
 वक़्त बिता कुछ ना बाकी 
टूटे से अवशेष है
लिखने को भी हाथ कांपे
 कुछ भी ना अब शेष है.....

@गद्दार

भुला दो..


मन लिखे, हाथ लिखे लिखे कागज़ कोरे से है
उस लिखे का क्या हो अब जो लिखा मन में मेरे,
दिल ये मेरा अब भी कहता जो हुआ उसे भूल जा
में भुलु या वो भूले कोई नहीं जो है भूलता | 
@gaddar

Saturday, 6 June 2015

शाम का वक़्त



मुहब्बत को उसकी आजमाने चला था
बस्ती को अलविदा कर वीराने चला था

मुमकिन था लौटना आसां तो ना था
गिरा के "गद्दार" खुद को मयखाने चला था

टी@गद्दार

हैरान

हैरान हु हो कर, परेशां यु सोच सोच कर
मिलता नहीं सिला भी यु रो रो कर

रहता है बन के अजनबी पूरी महफ़िल में मुझ से
बहाता अश्क तन्हाई में मिलने की दुआए कर
उसकी हालत में क्या कंहू “गद्दार” तुझे अब में
वो रुके तो लफ्ज़ कह लो, 
बहे तो दिलोदिमाग में शिप्रा बन कर.......

एक ग़ज़ल नस्तर सी


यु मेरे अल्फ़ाज़ को आवाज़ को अहसास को
सीने में उठती इक कसक घुटती हुई सी साँस को

यु कहे “गद्दार” मुझ से कह भी दे जज्बात को
में कहु या ना कहु चुप ही रहा खामोश सा
और खोजता उस बात को और कोसता उस याद को
मेरे अहसासो की आवाज़े भी कुछ है बोलती
और मेरी हर उस बात को नज़रअंदाज़ भी अब में ही करू
उसकी नज़रो से मुझे अब भी शिकायत न रही
मेरी बाते जानकर हर फैसला उसने किया
दिल पे उसके घाव जो मेने दिए अब तक हरे
और पूछ कर यु हाल एक गुनाह मेने किया
जिंदगी बर्बाद करना यु मेरी आदत रही
न कभी सोचा था मेने खुद भी यूं हो जाऊंगा
क्या करू अब में बयान गुनाह मुझसे हो गया
होगा न हक़ में फैसला सबूत भी खिलाफ है
अब मेरे भी दिल में चुभे तंग से सवाल है
क्या करू जवाब उनको देने वाला अब नहीं
जिंदगी भी किसी की यु ख़त्म होती नहीं
में भी कैसे भुला ये रातें भी अब लंबी सी है
मेने खेले खेल ऐसे जिनकी यादे अब तलक
जिंदगी कितनी बड़ी है कैसे भुला में ये सब
माफ़ कर के वो मुझे माफ़ यु करता नहीं
क्या करू गुनाह मेरे माफ़ी लायक हो नहीं
मेरी हदो का इस तरह जवाब उसने यु दिया
कुछ भी ना कहकर उसने हद से ज्यादा कह दिया
डालकर हाशिये पे मुझको क्या चल रहा मन में तेरे
“गद्दार”  अगर में जान लू तो क्या कंहूँगा में तुम्हे
उसकी चाहत को यु मेने पत्थरो पे लिख दिया
पत्थरो से बह गए सैलाब आज कितने भी
मेने सोचा सोचकर होतो नहीं है कुछ भला
क्यों सोचकर करता हु में बर्बाद थोडा वक़्त भी
@गद्दार

बारिश का असर

सर्द मौसम में उभारा नाम तेरा शीशे पे मगर
जाने क्यूं इस ओस ने उसको सब धुंधला दिया
गीली उंगलिया गाल पर अब लिख रही है और कुछ.........

Gaddar


खंज़र





यु  तो  मेरे  कत्ल  कि  कोई  वजह ना  थी 
और  वो  कहता  रहा  खंजर किफायती  दाम   थे 
गद्दार