आफ़ताब थमा आसमां में या नजर पथरा गई
क्या हो रहा जानिब कुछ सच्चाईया रख दो
पत्तो की ओट में से, अब खिल रहे गुलाब
काँटों से अब के उन पे निगेहबानिया रख दो
आशिक उलझ रह माशूक की जुल्फ में
उनसे कंहो के कही दिल में बिनाईया रख दो
गंभीर से मसले कई, जरा नाजुक से ये रिश्ते
लो उनके दरमिया अब कुछ सौदाईया रख दो
वफ़ा के बंद दायरों से, बाहर हुआ "गद्दार"
उसके वास्ते अब कुछ, तन्हाइयां रख दो
~गद्दार
मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
Tuesday, 30 June 2015
Monday, 29 June 2015
ग़लतफ़हमी
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मुमकिन हो उनसे तुम्हे टांके लगाये थे
माचिस जलाई हो तो क्या आग ही जले
मुमकिन हो उनसे कई दिए जलाये थे
खंजरों पे लिखी हुई कतल की इबारते
मुमकिन हो वो भी कई जाने बचाये थे
हंस हंस के मिलते तुने "गद्दार" देखा था
मुमकिन हो वो बेनाम रिश्ते बनाये थे
बारिश में लौट आया वो भीगे लिबास में
मुमकिन हो उसने बहुत आँसु बहाये थे
~गद्दार
Sunday, 28 June 2015
Friday, 26 June 2015
ताजिर फ़िजा मशक्कते
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वफ़ा बेचने ताजिर भी सरे आम निकले
इमां खरीदने फटी जेबो से दाम निकले
जिस कदर बदली हुई है मौज-ए-फ़िज़ा
मुमकिन है पैकर भी इक सामान निकले
हर शख्श मशक्कत से जुगाड़ में लगा
बेचैन जिंदगी में कब ऐशो आराम निकले
हवस परस्त निगांहे कुछ तलाशती मिले
"गद्दार" सोचते है कब माहे रमजान निकले
~गद्दार
Wednesday, 24 June 2015
फ़िराक में
क्या खूब कंहा कातिल ने में उस की मज़ार पे हू
क़त्ल हो कर भी नहीं मरता में फिर फिराक में हू
दौड़ ये मंजिलो की है और किस अजब मुकाम पे हु
खो के बस्ती में,जज्ब हो दुपहर भी सुबहो-शाम में हू
~gaddar
Tuesday, 23 June 2015
इश्क़ ताले
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यु इश्क़ में कई भरम पाले है
अधूरे लिखे ख़त भी संभाले है।
नादानियों, बेचैनियों के बाबद
तेरे दीदार को कई रस्ते निकाले है।
तेरे लिए खुदा का रुख करता हूं
इबादत के भी कुछ हर्फ़ बदल डाले है।
क्या बचपना है या फिर मुहब्बत में हूं
फिर तेरी हा,ना के सिक्के उछाले है।
फिजायें इश्क़ की घुस आई है घर में क्यूं
"गद्दार" तेरे दिल पे तो बरसो से ताले है।
~गद्दार
Monday, 22 June 2015
इश्क़ कातिल
रूह कत्ल हो गई थी मेरी कल रात में
इश्क़ कातिल भी शामिल था वारदात में
छींटे भी खंजर पे, दामन भी दागदार
खूं-ए-जां का सर्द रंग बहा जज्बात में
मुंसिफ के बयानों में जारी है फेरबदल
जिरह भी हो चुकी है अब हवालात में
आरोप भी है लगे, दफाए भी अब लगेगी
शक ए वफ़ा वजह मालूम हुई तहकीकात में
इंसाफ क्या मिलेगा तराजू में तौल कर
फैसले होते नहीं इनके अदालात में
दिल भी ये शरीक था इश्क़ के साथ
"गद्दार" अब क्या करे इस हालात में
@गद्दार
Friday, 19 June 2015
ठुकरा दो मुझे
आ तौहीन करो मेरी, अब ठुकरा दो मुझे
लौटने को है तिश्नगी तेरी, तेजाब सा पिला दो मुझे
इश्क़ को मसले से बाहर ही रखो, बेवफाई की नोलिश कर दो
तेरे लौट कर आने की वजह अस्ल मालूम है मुझे
हाथ मेरे कुछ कुछ पहुँचने लगे है आसमां तक
तोड़ ख्वाबो के पर, जगह मेरी दिखला दो मुझे
राज गहरे है कई "गद्दार" तेरे भीतर तक धँसे
बेनकाबी की हो अगर तो इत्तिला कर दो मुझे..
@gaddar
लौटने को है तिश्नगी तेरी, तेजाब सा पिला दो मुझे
इश्क़ को मसले से बाहर ही रखो, बेवफाई की नोलिश कर दो
तेरे लौट कर आने की वजह अस्ल मालूम है मुझे
हाथ मेरे कुछ कुछ पहुँचने लगे है आसमां तक
तोड़ ख्वाबो के पर, जगह मेरी दिखला दो मुझे
राज गहरे है कई "गद्दार" तेरे भीतर तक धँसे
बेनकाबी की हो अगर तो इत्तिला कर दो मुझे..
@gaddar
Wednesday, 17 June 2015
लिबास
वो कहते है मेने उन्हें भुला रखा है
अश्क बहते ही नहीं पलको को सिला रखा है।
वो कहते है खामोश से है अब शेर मेरे
लफ्ज़ हिलते नहीं होंठो को भी सिला रखा है।
वो कहते है अजनबी सा नजर आने लगा हु मैं
लिबास-ए-वफ़ा में "गद्दार" का कमीज सिला रखा है
@gaddar
Saturday, 13 June 2015
Friday, 12 June 2015
Thursday, 11 June 2015
प्यास इतनी है मेरी
खुदगर्ज इतने तो न थे की शोलो को हवा कर दो
प्यास इतनी है मेरी समंदर में दरिया मिला कर दो।
जिस्म और रूह की बंदिशों में दिल की गफलते
मुमकिन हो अगर तो मेरे जिस्म को रूहानी कर दो।
अश्क रख आँखों में तुझसे मिलाऊँ किस तरह
ये लो मेरे रिश्ते को खुले तौर पे बेमानी कर दो।
कंहा रहती हो खोयी खोयी सी आजकल तुम
सलीका इतना ना रहा चाय में चीनी मिला कर दो।
@gaddar
Wednesday, 10 June 2015
Tuesday, 9 June 2015
अधूरी नज्म
अधूरी सी इस नज्म को पूरा कर दो
पहले दिल में रहो फिर उसे तनहा कर दो।
पहले दिल में रहो फिर उसे तनहा कर दो।
बूंदों का असर
एक ग़ज़ल के साथ दिल अपना नज़र कर रहा होता
उनके जाने के मौसम पे दिल काबू न कर रहा होता
उनके जाने के मौसम पे दिल काबू न कर रहा होता
खुद को छोड़ पाता खुला एक पल के लिए भी तो
चेहरे पे गिरती बूँद कुछ और असर कर रहा होता
चेहरे पे गिरती बूँद कुछ और असर कर रहा होता
अगर मुहब्ब्बत इतनी आसां होती तो
इस समय उसकी कहानी का हिस्सा बन रहा होता
इस समय उसकी कहानी का हिस्सा बन रहा होता
उसको पाने की मंज़िल अगर मुमकिन न हो
पर मेरी चाहत पहुचने का रास्ता होता
पर मेरी चाहत पहुचने का रास्ता होता
एक रात ग़ज़ल
दर्द में खुद को डुबाना है मुश्किल
जैसा दर्द हो मुताबिक असर होता है
जैसा दर्द हो मुताबिक असर होता है
क्यों झांकते फिरे गुलशन के चारो और
मौसम-ए-गुल तो भीतर की तरफ होता है
तूने कुछ राय बना ली हो बारे में मेरे
उससे साबित ही हर बार कुछ गलत होता है।
मौसम-ए-गुल तो भीतर की तरफ होता है
रो लो तुम तो बारिश की झलक हो
हंस दो तो बहारो सा नजारा होता है
हंस दो तो बहारो सा नजारा होता है
किसी की परवाह ना करु,तेरी बातें खामोश सुनु,
ऐसी हालत हे मेरी , शराब का हल्का सा असर होता है
रातो रातो जागते कटती है राते मेरी
आँखों-आँखों में नया पहर होता है
आँखों-आँखों में नया पहर होता है
तूने कुछ राय बना ली हो बारे में मेरे
उससे साबित ही हर बार कुछ गलत होता है।
Monday, 8 June 2015
आग में जलाना चाहता हूँ।
ये उलझते हुए बादल, मन की उलझन की तरह,
उदासी भरी बारिश से खुद को बचाना चाहता हूँ।
उदासी भरी बारिश से खुद को बचाना चाहता हूँ।
घर को लौटू तो घर भी न मिले,
मुमकिन है रास्ता भुलाना चाहता हु।
मुमकिन है रास्ता भुलाना चाहता हु।
मौजूद हु यंहा भी,मौजूद हु वंहा भी,
हाथ खुद के अब आग में जलाना चाहता हूँ।
हाथ खुद के अब आग में जलाना चाहता हूँ।
रुक गया था मुहब्बत में मंजिल से पहले तक खुद को आकर साहिल पे अब डुबाना चाहता हूं...
@गद्दार
Sunday, 7 June 2015
एक चेहरा वो तेरा
एक चेहरे पे लगा के चेहरा देखु मगर
एक चेहरा वो तेरा ना भुला ना भुलायेगा
एक चेहरा वो तेरा ना भुला ना भुलायेगा
लौटना अब मुनासिब हो अगर या ना भी हो
तेरी राहे देखना भी नमाजो सा हो जायेगा
तेरी राहे देखना भी नमाजो सा हो जायेगा
राख देखी रंज देखा,देखे कुऐ गहरे मगर
अब मेरा दिल डूबता सा,डूबता ही जायेगा
अब मेरा दिल डूबता सा,डूबता ही जायेगा
घर की राह लोटा हु, एक चुभन ठंडी सी है
नश्तरे दिल में चुभी या चुभ रही बाहर कंही
नश्तरे दिल में चुभी या चुभ रही बाहर कंही
अब सितारे देख मुझको टिमटिमाना बंद करे
क्या गुनाह मुझ से हुआ अब छुप रहा है चांद भी
क्या गुनाह मुझ से हुआ अब छुप रहा है चांद भी
जग भरोसा ना करे तो ना करे ये भी सही
वो भरोसा ना करे, “गद्दार” अब किसको कंहू
वो भरोसा ना करे, “गद्दार” अब किसको कंहू
क्या करे कोई सितारा टूट कर ख्वाइश ना हो
मेरी चाहत को भी अब मुझ से कोई ख्वाइश नहीं
मेरी चाहत को भी अब मुझ से कोई ख्वाइश नहीं
@गद्दार
Saturday, 6 June 2015
एक ग़ज़ल नस्तर सी
यु मेरे अल्फ़ाज़ को आवाज़ को अहसास को
सीने में उठती इक कसक घुटती हुई सी साँस को
यु कहे “गद्दार” मुझ से कह भी दे जज्बात को
में कहु या ना कहु चुप ही रहा खामोश सा
और खोजता उस बात को और कोसता उस याद को
और खोजता उस बात को और कोसता उस याद को
मेरे अहसासो की आवाज़े भी कुछ है बोलती
और मेरी हर उस बात को नज़रअंदाज़ भी अब में ही करू
और मेरी हर उस बात को नज़रअंदाज़ भी अब में ही करू
उसकी नज़रो से मुझे अब भी शिकायत न रही
मेरी बाते जानकर हर फैसला उसने किया
मेरी बाते जानकर हर फैसला उसने किया
दिल पे उसके घाव जो मेने दिए अब तक हरे
और पूछ कर यु हाल एक गुनाह मेने किया
और पूछ कर यु हाल एक गुनाह मेने किया
जिंदगी बर्बाद करना यु मेरी आदत रही
न कभी सोचा था मेने खुद भी यूं हो जाऊंगा
न कभी सोचा था मेने खुद भी यूं हो जाऊंगा
क्या करू अब में बयान गुनाह मुझसे हो गया
होगा न हक़ में फैसला सबूत भी खिलाफ है
होगा न हक़ में फैसला सबूत भी खिलाफ है
अब मेरे भी दिल में चुभे तंग से सवाल है
क्या करू जवाब उनको देने वाला अब नहीं
क्या करू जवाब उनको देने वाला अब नहीं
जिंदगी भी किसी की यु ख़त्म होती नहीं
में भी कैसे भुला ये रातें भी अब लंबी सी है
में भी कैसे भुला ये रातें भी अब लंबी सी है
मेने खेले खेल ऐसे जिनकी यादे अब तलक
जिंदगी कितनी बड़ी है कैसे भुला में ये सब
जिंदगी कितनी बड़ी है कैसे भुला में ये सब
माफ़ कर के वो मुझे माफ़ यु करता नहीं
क्या करू गुनाह मेरे माफ़ी लायक हो नहीं
क्या करू गुनाह मेरे माफ़ी लायक हो नहीं
मेरी हदो का इस तरह जवाब उसने यु दिया
कुछ भी ना कहकर उसने हद से ज्यादा कह दिया
कुछ भी ना कहकर उसने हद से ज्यादा कह दिया
डालकर हाशिये पे मुझको क्या चल रहा मन में तेरे
“गद्दार” अगर में जान लू तो क्या कंहूँगा में तुम्हे
“गद्दार” अगर में जान लू तो क्या कंहूँगा में तुम्हे
उसकी चाहत को यु मेने पत्थरो पे लिख दिया
पत्थरो से बह गए सैलाब आज कितने भी
पत्थरो से बह गए सैलाब आज कितने भी
मेने सोचा सोचकर होतो नहीं है कुछ भला
क्यों सोचकर करता हु में बर्बाद थोडा वक़्त भी
क्यों सोचकर करता हु में बर्बाद थोडा वक़्त भी
@गद्दार
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