Tuesday, 30 June 2015

आफ़ताब तन्हाइयां

आफ़ताब थमा आसमां में या नजर पथरा गई
क्या हो रहा जानिब कुछ सच्चाईया रख दो

पत्तो की ओट में से, अब खिल रहे गुलाब
काँटों से अब के उन पे निगेहबानिया रख  दो

आशिक उलझ रह माशूक की जुल्फ में
उनसे कंहो के  कही दिल में  बिनाईया रख दो

गंभीर से मसले कई, जरा नाजुक से  ये रिश्ते
लो उनके दरमिया अब कुछ सौदाईया रख दो

वफ़ा के बंद दायरों से, बाहर हुआ "गद्दार"
उसके वास्ते अब  कुछ,  तन्हाइयां रख दो

~गद्दार

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