आफ़ताब थमा आसमां में या नजर पथरा गई
क्या हो रहा जानिब कुछ सच्चाईया रख दो
पत्तो की ओट में से, अब खिल रहे गुलाब
काँटों से अब के उन पे निगेहबानिया रख दो
आशिक उलझ रह माशूक की जुल्फ में
उनसे कंहो के कही दिल में बिनाईया रख दो
गंभीर से मसले कई, जरा नाजुक से ये रिश्ते
लो उनके दरमिया अब कुछ सौदाईया रख दो
वफ़ा के बंद दायरों से, बाहर हुआ "गद्दार"
उसके वास्ते अब कुछ, तन्हाइयां रख दो
~गद्दार
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