Tuesday, 9 June 2015

एक रात ग़ज़ल


दर्द में खुद को डुबाना है मुश्किल
जैसा दर्द हो मुताबिक असर होता है

क्यों झांकते फिरे गुलशन के चारो और
मौसम-ए-गुल तो भीतर की तरफ होता है
रो लो तुम तो बारिश की झलक हो
हंस दो तो बहारो सा नजारा होता है
किसी की परवाह ना करु,तेरी बातें खामोश सुनु,
ऐसी हालत हे मेरी , शराब का हल्का सा असर होता है
रातो रातो जागते कटती है राते मेरी
आँखों-आँखों में नया पहर होता है

तूने कुछ राय बना ली हो बारे में मेरे
उससे साबित ही हर बार कुछ गलत होता है।

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