मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर,
उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का
वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
Friday, 12 June 2015
दुआ
जिन्दगी से अजनबी और अजनबी सी जिन्दगी,
मर रहे है रोज़ कुछ,जी रहे है कुछ अभी,
है खुदा का कायदा, जितनी सज़ा है वो तो जी,
अब दुआ के कायदो से भी दुआ मिलती नही
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