Sunday, 25 October 2015

माफ़ी सज़ा गद्दार

  जला ही देंगे ये सुलगते से ख़्वाब मुझे
  मिलते नहीं इन सवालो के जवाब मुझे

       हर शाम दरिया पे ये नज़ारे होते है
    डूबता मिले ख्वाहिशें आफ़ताब मुझे

   तेरी मुआफ़ी मेरे लिये मानिंद ए सज़ा
    क्यूँ दे दिये ये "गद्दार" से ख़िताब मुझे

    जब भी तेरी यादों के पन्नें उलटता हूँ
       क्यूँ मिलते नहीं सूखे हुए गुलाब मुझे

#गद्दार

Sunday, 18 October 2015

खामोशियां जुर्म गद्दार

स्याही में अश्कों को घोलता रहा
मै खामोशियों कि जुबां में बोलता रहा

दरिया, मयख़ाने हर ठिकाने देखें
ज़ामें तिश्नगी में समंदर उड़ेलता रहा

चराग़ भी कंहा तक रौशनी बिखरें
     स्याह अंधेरो के मंज़र टटोलता रहा

मेरे हुनर को कहते है जुर्म "गद्दार"
में इक चाबी से हर ताले को खोलता रहा

#गद्दार

Friday, 16 October 2015

एक सवाल गद्दार

मै लिखूँ या चुप रंहू    जवाब की तलाश में
जाने क्या बारे में मेरे अब से सोचा जायेगा

फैसला भी जानकर तुझको ही तकता रंहू
तू कहे कोई और है, मुझको  देखा जायेगा

उसका क्या जो लिख गया तहरीर इन पानियों पे
क्या उसे अब आग के हाथों मिटाया जायेगा।

फैसले मुझसे कहें सज़ाएं भी अब तुम को ही हो
मुंसिफ के बयानों में गुनहगार माना जायेगा

कह गये ये फ़ासले नजदीकियां आसां ना है
  हम भी देखेंगे अब कोई कँहा तक जायेगा

उसके आंसू दर्द ये घाव कुरेदे हुए
दिल की शह और मात में "गद्दार" मारा जायेगा

#गद्दार

Wednesday, 14 October 2015

हल्के हल्के शरारे

इस कदर बात उठे दिल को दिवाना कर दे
     गर्म सी धूप औ रातों को सुहाना कर दें

हल्के हल्के से शरारो सी वफा भी हो अगर
   साथ में सर्द से झोंकों का ठिकाना कर दे

कुछ भी इजहार हो दिल से तो जुबां चुप सी हो
     सारे लफ्ज़ों को मुहब्बत से रवाना कर दे

  तुम चिरागों को हवाओं में इस कदर रखना
          शमां ए नूर से रौशन ये जमाना कर दे ।

Saturday, 3 October 2015

जुल्फ़े तुम्हारी

सर्द रातों में जुल्फे तुमने जब सँवारी है
दिल के जज्बात में आतिशे ही उभारी है ।

सुर्ख गालों से मिली रंगत सारे फूलों को
पार दरिया के जैसे कश्ती सी उतारी है ।

रंग होठों का लगा शामिल मौसिमे गुल सा
शोख नजरो में लगी मैय की ही खुमारी है ।

Thursday, 1 October 2015

पत्थर गद्दार 3

आइना था एक दिन बिखरना हि था
पत्थर के हश्र पर अब सोचता हूँ  में  #गद्दार