मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
दौड़कर चलता हूँ लांघ कर निकल जाऊँगा तबियत ऐसी नहीं मेरी देखूँगा फिसल जाऊँगा
शाम ए उल्फ़त में रंग बदलते होंगे फ़लक पे मै रात का मंजर हूँ पत्थर में बदल जाऊँगा #गद्दार
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