फूल कली सतरंगी ख्वाब
तितली भौरा सुर्ख़ गुलाब
घूँघट में मुखड़ा छुपता था
बदलियों में ...... माहताब
इक समंदर चाँदनी रात में
ज्वार सा चढ़ता.....शबाब
झुकते उठते कजरे नैना
पीता जाता .....इक शराब
शबनम चुराता आकर मेरा
होले होले.........आफ़ताब #गद्दार
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