Tuesday, 12 January 2016

ख़्वाब इंतिखाब गद्दार

तन्हाई में रातों सा शबाब आता है
कैसे बंद आँखों में ख़्वाब आता है

मेरी बर्बादियों में जो शुमार रहा है
उन   निगाहों पे इंतिख़ाब आता है

आप समंदर ढूंढते हो डूबने खातिर
कि पानी दरिया में बेहिसाब आता है

उठ उठ आते है सौ सवाल तुम पर
"गद्दार" उन पर  एक जवाब आता है  #गद्दार 

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