ये जो तेरे पैरो की आहट है
सूखे पत्तो की सरसराहट है
गिरते झरने का शोर है तुझमे
या जंगल की मुस्कराहट है
अधूरे ख्वाब की ताबीर तो देखो
कैद परिंदों सी फड़फड़ाहट है
दर्द "गद्दार" क्यूँ बेपनाह उठता है
तेरे चेहरे पे साफ तिलमिलाहट है #गद्दार
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