Thursday, 10 December 2015

परिंदा गद्दार तिलमिलाहट

       ये जो तेरे पैरो की आहट है
       सूखे पत्तो की सरसराहट है

    गिरते झरने का शोर है तुझमे
      या  जंगल की मुस्कराहट है

अधूरे ख्वाब की ताबीर तो देखो
   कैद परिंदों सी फड़फड़ाहट है

दर्द "गद्दार" क्यूँ बेपनाह उठता है
तेरे चेहरे पे साफ तिलमिलाहट है  #गद्दार

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