सुबह पर फ़ासले बढ़ाता हूँ
शाम पर वंही लौट आता हूँ
जो पाता हूँ सब गंवाता हूँ
हाथ खाली लौट आता हूँ
ख़ुद से लड़कर भीतर भीतर
थक कर खुद को हराता हूँ
सर्द रातों के काँपते अलाव
इक इक ख़्वाब जलाता हूँ
यादों की लोरियाँ गुनगुनाकर
"गद्दार" मै ख़ुद को सुलाता हूँ #गद्दार
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