Tuesday, 15 December 2015

लौटना मेरा गद्दार

     सुबह पर फ़ासले बढ़ाता हूँ
    शाम पर वंही लौट आता  हूँ

      जो पाता हूँ सब गंवाता  हूँ
        हाथ खाली लौट आता हूँ

    ख़ुद से लड़कर भीतर भीतर
      थक कर खुद को हराता हूँ

      सर्द रातों के काँपते अलाव
       इक इक ख़्वाब जलाता हूँ

     यादों की लोरियाँ गुनगुनाकर
     "गद्दार" मै ख़ुद को सुलाता हूँ    #गद्दार

 

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