मेरे अंदर का शोर गूंजता है और लाता है जिसे बाहर, उस से लिखता हूँ मै जो, उसे नाम नही देता शेर, ग़ज़ल, नज्म अशआर का वो तो होते है बस बिखरें पन्नें मेरे
सर्द सी मखमली हवा में मीठा सा ये लम्स घुले गीली रेत के सहरा में जब सूरज भी है पिघले से
जाने कब आँगन में तेरे मिश्री से ये फूल खिले झुकी-2 सी नज़र के संग में चोरी चोरी होंठ मिले
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